Friday, 10 January 2020

|| श्री विपरीत प्रत्यङ्गिरा मंत्र साधना ||

विनियोग :- ॐ अस्य विपरीत प्रत्यंगिरा मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि , अनुष्टुप छंद: देवी प्रत्यंगिरा देवता, ॐ बीजं, ह्रीं शक्ति: परकृत्या निवारणे जपे विनियोग:|  

षडंगन्यासः-
 यां कल्पयंति नोऽरयः ह्रां हृदयाये नमः।
 क्रूरां कृत्यां ह्रीं शिरसे स्वाहा।
 वधूमिव ह्रूं शिखायै वषट्।
 तां ब्रह्मणा ह्रैं कवचाय हुम्।
 अपनिर्णुद्म ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्।
 प्रत्यक् कर्तारमृच्छतु ह्रः अस्त्राय फट्।
पदन्यासः-
         ह्रीं यां ह्रीं शिरसि।
         ह्रीं कल्पयन्ति ह्रीं भ्रूमध्ये।
         ह्रीं नो ह्रीं मुखे।
         ह्रीं अरयः ह्रीं कण्ठे।
         ह्रीं क्रूरां ह्रीं दक्षिणेबाहौ।
         ह्रीं कृत्यां ह्रीं वामबाहौ।
         ह्रीं वधूम् ह्रीं हृदि।
         ह्रीं इव ह्रीं नाभौ।
         ह्रीं ता ह्रीं दक्षिण उरौ।
         ह्रीं ब्रह्मणा ह्रीं वाम उरौ।
         ह्रीं अपनिर्णुद्म ह्रीं दक्षिणजानौ।
         ह्रीं प्रत्यक् ह्रीं वामजानौ।
         ह्रीं कर्तारम् ह्रीं दक्षिणपादे।
         ह्रीं ऋच्छतु ह्रीं वामपादे।

ध्यान्
आशाम्बरा मुक्तकुचा घनच्छविध्र्येया स-चर्मासि-कराऽहि भूषणा।
दंष्ट्रोग्रवक्त्रा-ग्रसिताहितात्वया प्रत्यंगिरा शंकर तेजसेरिता।।


मंत्र-  ह्रीं या कल्पन्ति नोऽरयः क्रूरां कृत्यां वधूमिव। तां ब्रह्मणाऽप निर्णुद्म प्रत्यक् कर्तारमृच्छतु ह्री